बहुत समय पहले की बात है। किसी राज्य में एक अत्यंत प्रतापी राजा राज करता था। एक दिन उस राजा के दरबार में एक विदेशी अतिथि आया और उसने उस राजा को एक बहुत सुंदर पत्थर उपहार स्वरुप दिया। राजा वह पत्थर देख अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने उस पत्थर से भगवान राम की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निश्चय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया।
राजा के आदेश अनुसार, महामंत्री गाँव के सर्व श्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गए और उसे वह पत्थर देते हुए बोले, “महाराज मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं। सात दिन के भीतर इस पत्थर से भगवान राम की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना। इसके लिए तुम्हें 500 स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी।” 500 स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार बहुत ख़ुश हुआ और महामंत्री के जाने के बाद प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल कर लाया। अपने औज़ारों में से उसने एक बहु बड़ा हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से प्रहार करने लगा। किंतु पत्थर जस का तस रहा। मूर्तिकार ने हथौड़े के कई प्रहार पत्थर पर किये, किंतु पत्थर नहीं टूटा।
सौ बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब सौ बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा। वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है। इसलिए इससे भगवान राम की प्रतिमा नहीं बन सकती। महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था। इसलिए उसने भगवान राम की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया। पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया। पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया। इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और 500 स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता।
कहानी से सीख :-
मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं। कई बार किसी कार्य को करने के पूर्व या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पूर्व ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं। कई बार हम एक-दो प्रयास में असफलता मिलने पर आगे प्रयास करना छोड़ देते हैं। जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर कार्य पूर्ण हो जाता या समस्या का समाधान हो जाता। यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिये, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती। क्या पता, जिस प्रयास को करने के पूर्व हम हाथ खींच ले, वही हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये।